चिंतामणि’ ईश्वर की भक्ति से दूर हो जाती हैं सभी चिंताएंः भारती

देहरादून । ‘दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान’ की देहरादून शाखा के द्वारा रविवार को एक बार फिर से अपने आश्रम सभागार, निरंजनपुर में दिव्य गुरु के महान सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सदैव की भांति मंचासीन संगीतज्ञों ने अनेक सुमधुर भजनों का गायन करते हुए संगत को आत्मविभोर कर दिया। विशेष रूप से इस भजन ने संगत के हृदय को भीतर तक छुआ- ‘‘तेरे उपकारों का गुरूवर मेरा रोम-रोम आभारी है……..’’ समस्त भजनों की सारगर्भित व्याख्या करते हुए मंच का संचालन साध्वी विदुषी भक्तिप्रभा भारती के द्वारा किया गया।
उन्होंने बताया कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति वस्तुतः मनुष्य की आत्मा का जन्म है, इसे महापुरुषों ने इंसान का दूसरा जन्म कहकर अभिवंदित किया है। यह जन्म किया जाता है एक ‘श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ पूर्ण सद्गुरू’ के द्वारा। यह अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि! जब तक ‘ब्रह्मज्ञान’ का सफ़र शुरू नहीं होगा तब तक! ‘परमलक्ष्य’ भी प्राप्त नहीं होगा और वह परम लक्ष्य है परमपिता परमेश्वर की प्राप्ति। मनुष्य की अमूल्य देह उसे परमात्मा का एक महान उपहार है। जब तक मनुष्य इस उपहार को पूर्णरूपेण परिष्कृत कर, संवार कर, निखारकर और अपनी सम्पूर्ण जीवन यात्रा को शुद्ध-विशुद्ध करके वापस इस उपहार को परमात्मा को नहीं लौटा देता, तब तक! अनेक जन्मों की कष्टकारी आवागमन भरी पीड़ा मानव को सहनी पड़ती है। सद्गुरू ही परमात्मा की इस दिव्य धरोहर को परिष्कृत करने का महती कार्य किया करते हैं। हमारी आत्मा जो कि परमात्मा का ही ‘दिव्य अंश’ है, इसके इर्द-गिर्द मन द्वारा फैला दिए गए अंधकार को सद्गुरू अपनी अहैतुकी कृपा के दिव्य प्रकाश से अलोकित कर ईश्वरीय धाम के काबिल बना देते हैं। वास्तव में! तब यह मनुष्य देह परमात्मा के दिए हुए ‘गिफ्ट’ का ‘रिर्टन गिफ्ट’ बन जाती है। गुरू के प्रेम की गहराई को समझ पाने के लिए मात्र एक ही उपाय है कि गुरू के प्रत्येक वचन को ‘ब्रह्मवाक्य’ मानकर उन पर पूर्ण समर्पण और प्रगाढ़ विश्वास के साथ चलाएमान होना, उन्हें आत्मसात कर लेना। शाश्वत भक्ति के मार्ग में तो एक भक्त-साधक को पल-पल अपने गुरूदेव के दिशा-निर्देशों की और उनके सटीक मार्ग-दर्शन की अत्यन्त आवश्यकता पड़ा करती है। गुरू के प्रेम रूपी अमृत को शिष्य तभी प्राप्त कर पाता है जब वह अपना ‘सर्वस्व’ ही गुरू के चरणों में अर्पित कर देता है। निष्ठापूर्वक भक्ति मार्ग में चलते हुए अपने गुरु पर पूर्णरूपेण निर्भर होकर उनका संपूर्ण आश्रय प्राप्त कर लेता है, तब! शिष्य के जीवन में जो भी घटता है, वह सब कुछ गुरुदेव की इच्छा से ही हुआ करता है। आश्रम परिसर में आज भण्डारे का भी आयोजन किया गया।