जो ’धर्म’ से चला, उसके साथ ईश्वर हैं और उसकी विजय सुनिश्चितः साध्वी स्मिता भारती

देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के देहरादून आश्रम सभागार में आज पुनः साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मंच पर विराजमान ब्रह्मज्ञानी संगीतज्ञों द्वारा अनेक सुंदर भजनों की प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। मंच का संचालन साध्वी विदुषी सुभाषा भारती जी के द्वारा किया गया। सद्गुरु सर्व आशुतोष महाराज जी की शिष्या और देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी स्मिता भारती ने अपने दिव्य उद्बोधन में कहा कि धर्म समाज की आत्मा जैसा है, ठीक वैसे ही जैसे मनुष्य जीवन को चलाने वाली उसकी जीवनी शक्ति ’आत्मा’ है। चाहे समाज हो या फिर इंसान, जहां से भी धर्म का आलोप हो जाता है तो दोनों ही निर्जीव-निष्प्राण हो जाते हैं। धर्म को मानने से अधिक जानने की आवश्यकता है।
धर्म वर्गीकरण या भेदभाव का नाम नहीं है। धर्म संकीर्णता के दायरों में कैद हो जाने का भी नाम नहीं है, अपितु! धर्म तो समस्त मानव समाज को एकता के, प्रेम के, सौहार्द के सशक्त सूत्र में बांधकर एक कर देने का नाम है। धर्म व्यापक है, सार्वभौमिक रूप से सभी का एक ही है। यह संसार महापुरुषों ने एक ’रंगमंच’ की मानिंद बताया है जिसमें विभिन्न किरदार अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। और इस संसार रूपी रंगमंच का महान निर्देशक है, वह परमात्मा! वह परम गुरु! इंसान को वह निर्देशक परमात्मा सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए ही निर्देशित किया करता है, लेकिन! विडंबना है कि मनुष्य अपने-अपने मनानुसार कई प्रकार की ऐसी-ऐसी भूमिकाएं निभाने लगता है जो कि उसे नायक की बजाए खलनायक बनाकर रख देती हैं, जबकि! वह परम पुरुष तो अपने द्वारा संचालित मनुष्यों को सदैव यह बात कहते हुए प्रोत्साहित किया करता है कि- ‘आप अपने किरदार को इतना सुंदर, इतना जीवन्त निभाओ कि पर्दा गिर जाने के बाद भी तालियाँ बजती ही रहें’। वह परम शक्ति चाहे श्री राम के रूप में आई हो, चाहे प्रभु श्रीकृष्ण के रूप में, उनका एक मात्र लक्ष्य यही रहा कि अपने भ्रष्ट किरदार से रंगमंच को दूषित करने वाले लोगों को सही राह दिखाएं। उनसे सही अभिनय कराकर एक ’यादगार’ किरदार के रूप में परिणत कर सकें। प्रसाद का वितरण करके साप्ताहिक कार्यक्रम का समापन किया गया।