मानव जीवन की ‘पूर्णता’ का आधार, पूर्ण गुरू प्रदत्त ‘‘ब्रह्मज्ञान’ : भारती

देहरादून । दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्वारा रविवार को निरंजनपुर स्थित आश्रम सभागार में भव्य रविवारीय साप्ताहिक सत्संग-प्रवचनों तथा मधुर भजन-संर्कीतन का आयोजन किया गया। सदैव की भांति आज के कार्यक्रम का शुभारम्भ भी संस्थान के संगीतज्ञों द्वारा प्रस्तुत मधुर भजनों की श्रंखला से किया गया। अनेक सुन्दरतम भजनों की श्रंखला को संस्थान के ब्रह्मज्ञानी संगीतज्ञों द्वारा प्रस्तुत करते हुए इस मर्मस्पर्शी भजन से संगत को भाव-विभोर कर दिया गया- कदमों में तेरे दाता, मेरी उम्र बीत जाए, मिलते रहें मुझे यूँ, तेरी रहमतों के साए…….।
भजनों की सम्पूर्ण व्याख्या करते हुए मंच का संचालन साध्वी विदुषी अनीता भारती द्वारा किया गया। उन्होंने बताया कि मनुष्य अपने जीवन में अनेक सुख-सुविधाओं को जुटाता है, अपनी सारी अनमोल श्वांसों को मात्र भौतिक वस्तुओं को इकट्ठा करने में और नातों-रिश्तों को बनाए रखने में ही स्वाहा कर देता है। अंत में जब उसे इन श्वांसों का मूल्य किसी महापुरूष द्वारा बार-बार समझाने पर, याद आता भी है तो तब तक बड़ी देर हो चुकी होती है, उसका काल सामने खड़ा होता है, उसे उस समय समझ आता है कि सारा जीवन उसने मात्र कौड़ियां-ठीकरे ही इकट्ठे किए हैं।
आज के कार्यक्रम में सदगुरू आशुतोष महाराज की शिष्या तथा संस्थान की प्रचारिका साध्वी विदुषी भक्तिप्रभा भारती ने प्रवचन करते हुए बताया कि सत्संग विचार मनुष्य को परमात्मा तक पहुंचाने का दिव्य कार्य किया करते हैं, आवश्यकता है कि इन्हें श्रवण करने के साथ-साथ हृदय में धारण भी किया जाए तभी ये पूर्ण लाभ प्रदान करने लगते हैं। मनुष्यों की सोच का स्तर भिन्न-भिन्न होता है, संसार के संबंध में इनके उद्देश्य और विचार धाराएं भी अलग-अलग ही हुआ करती हैं। सत्संग एक एैसा माध्यम है जहां यह भिन्नता अभिन्नता में परिवर्तित हो जाती है, पूर्ण गुरू के सत्संग के भीतर एक ईश्वर की मात्र चर्चा ही नहीं अपितु ईश्वर का दर्शन और उनकी प्राप्ति दोनों को ही सहज़-सुलभ बना दिया जाता है। प्रसाद का वितरण करते हुए साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।