धामों के कपाट बंद होने के बाद श्रद्धालू शीतकालीन गद्दी स्थल पर कर सकते हैं पूजा अर्चना
लगातार श्रद्धालुओं में शीतकालीन चारधाम यात्रा को लेकर बढ़ रही आस्था
देहरादून । उत्तराखंड में चारधाम यात्रा हर साल अप्रैल-मई से शुरू होकर अक्टूबर-नवंबर तक चलती है। चारोधाम के कपाट बंद होने के साथ ही परंपरागत यात्रा का समापन माना जाता था, लेकिन अगर आप चारधाम यात्रा को और अधिक रोमांचक व यादगार बनाना चाहते है तो अपना बैग पैक कर लें। क्योंकि कपाट बंद होने के बाद भी आप चारोंधाम की यात्रा कर सकते है और विशेष पूजा-अर्चना भी करा सकते हैं। दरअसल, राज्य सरकार ने बीते कुछ वर्षों में शीतकालीन चारधाम यात्रा की पहल की है, ताकि श्रद्धालु सर्दियों के मौसम में भी देवभूमि की आस्था से जुड़े रहें। इस योजना का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं बल्कि आर्थिक भी है, ताकि ठंड के मौसम में भी स्थानीय लोगों को रोजगार और व्यवसाय के अवसर मिलते रहें। अगर आप इस शीतकालीन यात्रा का प्लान बना रहे है तो हम आपको बताते है कि कैसे कपाट बंद होने के बाद बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के दर्शन कर सकते है।
जैसे ही गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ के कपाट सर्दियों के लिए बंद होते हैं, भगवान् की प्रतिमाओं को परंपरा के अनुसार शीतकालीन गद्दीस्थल लाया जाता है। इन स्थानों पर ही पूजा-अर्चना और दर्शन का आयोजन होता है और यहीं पर सभी देवी-देवताओं के दर्शन किए जाते है। माता यमुना की शीतकालीन पूजा खरसाली में होती है। वहीं गंगोत्री धाम की प्रतिमा मूंखबा गांव में विराजमान की जाती है। ऐसा ही बाबा केदारनाथ नाथ का भी शीतकालीन गद्दी स्थल है। केदारनाथ धाम के भगवान शिव ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में पूजे जाते हैं। जबकि बदरीनाथ धाम के भगवान विष्णु पांडुकेश्वर के योगध्यान बदरी मंदिर में विराजते हैं। इन चार स्थलों पर सर्दियों में विशेष पूजा होती है और श्रद्धालु यहां जाकर उसी भाव से दर्शन कर सकते हैं, जैसे मुख्य धामों में करते हैं। खास बात ये है कि शीतकालीन यात्रा का भी महत्त्व ठीक वैसा ही है, जैसा कपाट बंद होने से पहले होता है। शीतकालीन चारधाम यात्रा की भी शुरुवात अधिकतर श्रद्धालु हरिद्वार या ऋषिकेश से करते हैं। यही से यात्रा की पारंपरिक शुरुआत होती है। हरिद्वार से पहले पड़ाव के रूप में बरकोट पहुंचा जाता है, जहां से खरसाली यमुनोत्री का शीतकालीन स्थल का मार्ग है। इसके बाद उत्तरकाशी होते हुए मूंखबा गंगोत्री का शीतकालीन स्थल। इसके बाद फिर रुद्रप्रयाग गुप्तकाशी मार्ग से होकर ऊखीमठ केदारनाथ का शीतकालीन स्थल और अंत में जोशीमठ पांडुकेश्वर बदरीनाथ का शीतकालीन स्थल तक पहुंचा जाता है। राज्य पर्यटन विभाग ने इस मार्ग को धार्मिक-सांस्कृतिक सर्किट के रूप में विकसित किया है, ताकि श्रद्धालुओं को सुविधाजनक यात्रा अनुभव मिले।
बदरीनाथ के पुरोहित समाज से जुड़े पंडित आशुतोष डिमरी का कहना है कि चारधाम के कपाट भले ही बंद हो जाएं, लेकिन श्रद्धा का मार्ग कभी बंद नहीं होता। जितना महत्व मुख्य धामों में दर्शन का है, उतना ही महत्व शीतकालीन गद्दीस्थलों पर दर्शन का भी है। भगवान बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री सर्दियों में इन्हीं स्थलों पर पूजे जाते हैं। श्रद्धालु यहां जाकर वही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं, जो उन्हें मुख्य धाम में दर्शन का लाभ मिलता है, वो ही उन्हें यहां भी मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की यह पहल धार्मिक पर्यटन को निरंतर बनाए रखने में सहायक सिद्ध हो रही है।
आपको ये भी ध्यान रखना होगा अगर आप देश के किसी भी कोने से आ रहे है तो देहरादून जोलीग्रांट एयरपोर्ट तक ही हवाई मार्ग से आ सकते है। गर्मी के मौसम में चारधाम तक हेलीकॉप्टर सेवाएं उपलब्ध रहती हैं, लेकिन सर्दियों में यह सुविधा बंद रहती है। शीतकालीन चारधाम यात्रा पूरी तरह सड़क मार्ग से ही की जाती है। हेलीकॉप्टर सेवाओं पर मौसम की मार के कारण उड़ानें असुरक्षित मानी जाती हैं। इसीलिए सरकार ने सड़क मार्ग से ही शीतकालीन यात्रा चलाने का प्लान बनाया था। मुख्यमंत्री के सचिव बंशीधर तिवारी की माने तो जैसे-जैसे शीतकालीन यात्रा में साल दर साल बढ़ोतरी होगी, वैसे वैसे हो सकता है की भविष्य में हम शीतकालीन यात्रा के लिए भी हेली सुविधा उपलब्ध करवाएं। हलाकि कुछ स्थानों तक सर्दी में भी हेली से पहुंचा जा सकता है। चारधाम के कपाट बंद होने के बाद आमतौर पर नवंबर के दूसरे सप्ताह से शीतकालीन यात्रा की शुरुआत होती है। इस समय उत्तराखंड के ऊंचाई वाले हिस्सों में बर्फबारी का दौर भी शुरू हो जाता है। सफेद बर्फ से ढके पहाड़ों और शांत वातावरण में पूजा अर्चना का अनुभव श्रद्धालुओं के लिए दिव्य बन जाता है। हालांकि इस दौरान मौसम चुनौतीपूर्ण रहता है। तापमान कई बार शून्य के आसपास पहुंच जाता है। इसलिए यात्रियों को गर्म कपड़ों, ऊनी दस्तानों, जूतों और जरूरी दवाओं के साथ यात्रा करनी चाहिए। यात्रा के पहले स्थानीय प्रशासन से मौसम की जानकारी लेना भी आवश्यक है।
